सूखे पत्तों के नीचे छावं सी सोई हुई

मटमैली सी सुनहरी सी
सहाद्रि की फाल्गुनी घास
ओढ़े हुए यौवन धूप का
वनतृणों में बसी एक रहस्य भरी मनोहर सृष्टि
हो रहा कीटों के आदि-गीतों का गुंजन
सुखी घास और नई पत्तियों की खुश्बू से महकती हवा
गुलमोहर की छाँव बैठा है एक हिरण का जोड़ा
सन्तोष से भरे हुए, सुस्ताते हुए छन्नी धूप सेंकते
झपकी टूटती है तो नयनों से भर लेते हैं प्रेम-अँजुलिया
सूरज की ओट ले देख रहे हैं उनको तारे
गोधूलि में लौट जाएंगे वो घर
आकाश के खालीपन को देंगे तारे भर
रात को जब तुम देखोगी उन्हें टिमटिमाते हुए
वो कह रहें होंगे तुमसे हिरण के जोड़े की प्रेम कहानी
अनगिनत जुबानी
तुम पढ़ना उनके लबों को
पंचगनी के टेबल-टॉप पर लेट कर
यह कहानी जो है
सहाद्रि के पर्णपाती वनों में पलाश सी खिली हुयी
सूखे पत्तों के नीचे छावं सी सोई हुई
कालजयी
सम्पूर्ण
——कवि

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