टैंट पर गिरती बारिश की बूँदें
सौंधी हवा में घुली अनिश्चतता
पाने की चाह खोने का डर
प्रकृति से एकरूप हुआ मन, शान्त
स्वास-स्वास में चढ़ता गहरा एकान्त
असीमित जान पड़ता कोहरे का समन्दर
फिर भी, मन पँछी एक बाँवरा सा
उड़ जाता है कोहरे की धुरी से पार
कोसों दूर, बहुत दूर
मुंबई का समंदर, सुन्दर
बारिश का बहाना लेकर
तुम्हारे छोटे से छाते के नीचे
मैं आ जाता था, भीगते रहते, चलते रहते
मेरी इंग्लिश के उच्चारण की तुम
करती रहती उधेड़-बुन
समन्दर किनारे की वो बारिश, घनघोर
उसमें मिल जाती, तुम्हारे होंठों की मिठास
स्वासों में रमते स्वास, मुक्त
समन्दर की लहरों सा हृदय में उठता उफान
हवा की साएं-साएं,
उड़ता छाता, गाते सावन का गान
टैंट के मुहाने से टपक रही है टिप-टिप बूँदें
मिटटी में बनकर धारा बह रही हैं यादें
समन्दर से मिलने को
………..
कॉफ़ी के प्याले में टिक टिक करती ऊँगली,
घड़ियों को गिनती
मैं पी रहा हूँ मिठास भरे कड़वे से ये घूँट ….. कवि
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क्या बात
बहुत खूब
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Thanks.
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