पग-पग बढ़ते पाँव
थकान झेलते, लाँघते धुप-छाँव
आते, फिर पीछे छूट जाते कई गाँव
आहें भरते हुए लम्बे साँस
ऐंठते-हाँफते मँजिल आती पास
लेकिन जब तुम मिले अचानक से वन में
हर लिया तुमने मेरी थकान को
एक ही पल में, प्रिय खिलते बुराँस
सुन्दर लाल रंग ने भर दी रगों में एक नई उमंग
दिल में प्रेम की उठी आकाश तक ऊँची तरंग
मन कर रहा तुम्हारी ओट में ही डेरा डाल लूँ
पीठ तने पर टीकाकार, घाटियाँ, नदियाँ, सूर्यास्त,
रात और तारे, सबको निहार लूँ
फिर कल पहली किरण पड़े जो तुम पर
तब ही तुमसे अलविदा लूँ
तुम्हारा दिखना वन में अचानक से, भर गया देह में प्राण
तुम खिल रहे प्रिय बुरांस, ज्यों बुद्ध मुस्कुरा रहे पाकर निर्वाण
—कवि
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सुन्दर रचना
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Dhanyavaad
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