उसके पास होगी जादुई छड़ी

खैर-पंछी अपने लम्बे पँखों के नीचे
छुपाकर रखता है एक जादुई डंडी पीछे
जिसको पा जाए बदल जाएगी किस्मत
पानी की एक बाल्टी लानी होगी झटपट
पानी में उसको डाल दे
किन्तु बचे एक मायाजाल से
वो रूप बदलकर बनेगी साँप
जो इस मिथक को लेगा भाँप
निडर होकर पकड़े साँप को और निकाले बाहर
सरगम गूंजेगी देवता बरसाएँगे आसमाँ से फूल
उसके पास होगी जादुई छड़ी
सब इच्छाएं पूरी करेगी, छोटी या बड़ी

मैं पीछे खैर के फिरता रहता
ख्वाइशें उँगलियों पे गिनता रहता
पाँव को जैसे खींचे जाती खैर की उड़ान
एक डाल से दूजी डाल
मन में डर के भी आते ख्याल
कहीं साँप बन मुझे काट गयी डंडी
पेड़ चढ़े अनेक
चिड़िया तक के घर भी आया देख
पर मिली नहीं कभी वो डंडी
फिर एक दिन छूटी गाँव की ही पगडण्डी
और मैं शहर चला आया

अब यूँ है कि तुम मुझसे बात नहीं करती
मुझे अब कभी अपनी आँखों में नहीं भरती
नहीं जताती कभी अब कि बैठोगी पर्वतों में
सरोवर के किनारे मेरे साथ
पर मेरा मन नहीं होता निराश
एक आखिरी उपाय है मेरे पास
एक बार फिर जाऊंगा गाँव
फिर दौडूंगा खैर के पीछे नंगे पाँव
जैसे दौड़ता था बच्चपन में
और जब लेकर आऊंगा जादुई छड़ी
भीड़ लगेगी देखने को लोगों की बड़ी
तुम भी तो शायद देखना चाहोगी
इस बहाने क्या खबर मेरे करीब आओगी
और आओगी भी क्यूँ नहीं भला
आखिर तुम्हें भी तो अच्छी लगती हैं
हैरी-पॉटर की जादुई कहानियाँ — कवि

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Image credit: long tail birds in the Himalayas

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